शांतिकुंज में देवोत्थान एकादशी पर शोभायात्रा
हरिद्वार। तुलसी विवाह एवं देवोत्थान एकादशी के मौके पर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय परिवार, शांतिकुंज, ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के अंतेवासी कार्यकर्त्ताओं ने मंगल शोभायात्रा निकाली एवं विभिन्न कार्यक्रम आयोजित हुए। युगऋषि की पावन समाधि स्थल से तुलसी मैया का वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजन कर शोभायात्रा प्रारंभ हुई। इसमें शंख, घंटा, बांसुरी, बैण्ड, सितार, मंजिरा आदि भारतीय वाद्ययंत्रों के वादन साथ-साथ हो रहा था, जो आकर्षण का केन्द्र था। रैली के प्रथम पंक्ति में नन्हें-मुन्ने बच्चे थे, जिन्होंने सिर पर कलश में तुलसी के पौधे लेकर चले रहे थे तथा बहिनों एवं भाइयों ने तुलसी कांवड अपने-अपने कंधों पर उठाये थे। तो वहीं तुलसी मैय्या की पालकी एवं तुलसी रथ को मनभावन रूप से सजाई गयी थी। शोभायात्रा जब शांतिकुंज गेट नं० एक में पहुँची, तो संस्था की अधिष्ठात्री श्रद्धेया शैलदीदी ने आरती एवं पूजन किया। उन्होंने सबके उत्तम स्वास्थ्य एवं मानसिक सुदृढ़ता की प्रार्थना की। ये सभी कार्यक्रम कोविड-19 के अनुशासनों का पालन करते हुए आयोजित हुए।
इस अवसर पर अपने संदेश में अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि देवोत्थान एकादशी को तुलसी एकादश भी कहा जाता है। तुलसीजी को साक्षात् लक्ष्मीजी का निवास माना गया है। इस दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है। प्राचीन गं्रथों के अनुसार आज के ही दिन तुलसीजी का विवाह भगवान श्रीविष्णु के शालिग्राम रूप से कराया गया है। इसका सौभाग्य की प्राप्ति के रूप में उल्लेख मिलता है।
देसंविवि के कुलपति ने शरद पारधी ने तुलसी मैया एवं देवोत्थान एकादशी की पौराणिक कथाओं का उल्लेख करते हुए अपने आंतरिक शक्ति के जागरण के लिए प्रेरित किया। प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि ज्योतिष गणना के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी से भगवान विष्णु पुनः भूलोक आ रहे हैं और मांगलिक कार्यों का श्रीगणेश हो रहा है। इसलिए सभी अपने तन एवं मन की सुदृढ़ता के साथ आगे बढ़ते हुए इच्छित कार्यों को पूरा करने चाहिए। इनके अलावा व्यवस्थापक श्री महेन्द्र शर्मा, श्री शिवप्रसाद मिश्र, श्यामबिहारी दुबे, उदयकिशोर मिश्र आदि ने भी अपने-अपने विचार साझा किये। शोभायात्रा में देसंविवि के कुलसचिव बलदाऊ देवांगन, ओंकार पाटीदार, राजकुमार वैष्णव, परमानंद द्विवेदी, मंगल सिंह, नरेन्द्र ठाकुर, सोमेश्वर ताण्डी, रामदास सहित देसंविवि, शांतिकुंज एवं ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के एक हजार से अधिक पीतवस्त्रधारी नर-नारी उपस्थित रहे। सायं तुलसी विवाह को दिव्य कार्यक्रम आयोजित हुए।
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