जब हिटलर सत्ता में आया- श्याम सिंह रावत
जब हिटलर सत्ता में आया
दुनिया भर में कौन जानता था कि 30 जनवरी, 1933 का दिन जर्मनी को बर्बरता व दूसरे विश्वयुद्ध की आग में धकेलने वाला मनहूस दिन साबित होगा। इसी दिन अडोल्फ हिटलर को राष्ट्रपति पॉल फॉन हिंडेनबर्ग ने चांसलर नियुक्त कर उसके लक्ष्य पर पहुंचा दिया था। तब किसी को भी अंदाजा नहीं था कि एक दिन हिटलर आतंक का पर्याय बनकर जर्मनी को तहस-नहस कर देगा।
हिटलर समर्थकों ने नवनियुक्त राइषचांसलर का जोरदार स्वागत किया। चांसलर कार्यालय की एक खिड़की से लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए हिटलर ने नाजी प्रोपेगैंडा प्रमुख गोएबेल्स की मदद से एक बड़े समारोह की योजना बनाई। वह नाटकीय तरीके से जर्मनी में 'महान चमत्कार की रात' के रूप में अपनी नई शुरुआत दिखाना चाहता था। वह शहर में मशाल लिए लोगों की एक माला सी बनाकर ऐसी भव्य तस्वीर तैयार करना चाहता था, जो दर्शकों को प्रभावित कर सके।
बड़े स्वांग का खेल—
उस दिन बर्लिन के ब्रांडेनबुर्ग गेट पर मायूसी का माहौल था। इसी बीच जोसेफ गोएबेल्स के स्वयंसेवकों ने नाज़ी संगठन एसए के सदस्यों को जमा करना शुरू किया। शाम तक इसके 20,000 सदस्य वहां जुट गए और फिर उन्होंने मशाल जुलूस निकाला लेकिन आम लोगों ने उस स्वांग को बर्बाद कर दिया। पैदल चलने वाले बिना सोचे-समझे एसए की कतारों में घुसते रहे और वैसी तस्वीर नहीं बनने दी। इससे गोएबेल्स बहुत निराश हुआ लेकिन उसने यह तस्वीर बाद में बनवाई।
हिटलर सत्ता में कैसे आया—
देखा जाए तो वाइमार गणतंत्र का पतन ही हिटलर के उत्थान का कारण बना। जो 1918 में गणतंत्र बनने के बाद से ही पैदाइशी गड़बड़ी से जूझ रहा था। वह लोकतांत्रिक लोगों से वंचित लोकतंत्र था। नए गणतंत्र को उद्यमियों, नौकरशाही और राजनीतिज्ञों के अलावा आबादी के बड़े हिस्से ने अस्वीकार कर दिया था। इसकी शुरुआत से ही सत्ता पर कब्जे की वामपंथी और दक्षिणपंथी कोशिशें लोगों को परेशान कर रही थीं। पहले पांच सालों में उग्र दक्षिणपंथी पृष्ठभूमि के हत्यारों द्वारा खूब की गई हत्याएं देश को हैरानी में डालती रहीं। उनमें कम्युनिस्ट रोजा लक्जेमबर्ग और यहूदी विदेश मंत्री वाल्टर राथेनाऊ भी थे।
इससे वाइमार गणतंत्र की राजनीति अस्थिरता के भँवर में फँस गई और 14 साल में 12 सरकारें बनीं। संसद में मौजूद 17 पार्टियों में बहुत-सी संविधान विरोधी थीं। बढ़ते राजनीतिक व आर्थिक संकट के साथ लोकतांत्रिक पार्टियों में लोगों का भरोसा खत्म होता गया तो उग्रपंथी पार्टियों का समर्थन बढ़ता गया। दक्षिणपंथी नाजी पार्टी और वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टियां आमने-सामने थीं। 1930 में जर्मनी गृहयुद्ध के कगार पर था। नाजियों और कम्युनिस्टों के बीच खुला संघर्ष शुरू हो गया। 1929 की विश्वव्यापी मंदी ने हालत और भी खराब कर दी। 1932 में औपचारिक रूप से 56 लाख लोग बेरोजगार थे।
ताकतवर नेता पॉल फॉन हिंडेनबुर्ग—
बहुत से जर्मन इस हालत में देश को संकट से निकालने के लिए एक ताकतवर नेता को चाहने लगे। राष्ट्रपति पॉल फॉन हिंडेनबुर्ग ऐसे ताकतवर शख्स थे और वे बहुत से लोगों के लिए सम्राट जैसे थे। वैसे भी वाइमार संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का पद बहुत शक्तिशाली था। वह संसद भंग कर सकता था और अधिनियम के जरिए कानून लागू कर सकता था। इन अधिकारों का हिंडेनबुर्ग ने अक्सर इस्तेमाल भी किया लेकिन अब 85 साल के बूढ़े हिंडेनबुर्ग जर्मनी के रक्षक की भूमिका निभाने की हालत में नहीं रह गए थे।
वे कई अस्थिर सरकारों के बाद राष्ट्रवादी अनुदारवादी ताकतों की स्थिर सरकार बनाना चाहते थे। शुरू में वे हिटलर को चांसलर बनाने के पक्ष में नहीं थे और उसे बोहेमिया का कॉरपोरल कहते थे क्योंकि हिंडेनबुर्ग स्वयं पहले विश्व युद्ध में लड़ने वाले जनरल फील्ड मार्शल थे, जबकि हिटलर एक साधारण सैनिक था।
इस पर भी 1933 आते-आते हिंडेनबुर्ग ने अपनी राय बदल ली। उनके विश्वासपात्रों ने उन्हें बताया कि वे हिटलर को नियंत्रण में रखेंगे। पीपुल्स पार्टी के अल्फ्रेड हुगेनबर्ग के कहने पर नाजी पार्टी को कैबिनेट में सिर्फ दो सीटें दी गईं। बदले में हिटलर और उसके समर्थकों ने शुरू में जानबूझकर नरमी दिखाई और ज्यादा हो-हल्ला नहीं किया।
अपने ही परीलोक को नर्क बना दिया—
30 जनवरी, 1933 को हिटलर और उसके साथियों का एक सपना पूरा हो गया था। गोएबेल्स ने खुश होकर अपनी डायरी में लिखा था, "हिटलर राइषचांसलर बन गए हैं। हम परीलोक में हैं।" बिना सोचे-समझे गणतंत्र की कब्र खोदने वाले को देश का चांसलर बना दिया गया था। उसने अपनी जीवनी माइन कॉम्प्फ में अपनी योजनाएं साफ कर दी थीं। उसने लिखा था कि 'यहूदियों को मिटा दिया जाएगा और तलवार की मदद से नया इलाका जीता जाएगा।'
यह इतिहास का बहुत बड़ा मजाक है कि हिटलर की नियुक्ति संविधान सम्मत तरीके से हुई थी। हिंडेनबुर्ग ने हिटलर को चांसलर पद की शपथ दिलाने के बाद कहा था, "अब श्रीमान भगवान की मदद से आगे बढ़ें।" वे 1934 में मरने से खुद यह नहीं देख पाए कि हिटलर जर्मनी को नरसंहार और विश्व युद्ध की ओर ले गया।
हिटलर ने बहुत ही जल्द दिखा दिया कि उसे घेरने, कमजोर या नियंत्रित करने का इरादा कितना बचकाना था। उसके चांसलर बनने के कुछ ही दिनों के अंदर पूरे देश में नाजियों के एसए संगठन के गुंडों का आतंक शुरू हो गया। कम्युनिस्टों, सोशल डेमोक्रैटों और ट्रेड यूनियनिस्टों पर अत्याचार शुरू हुए। कुछ ही दिनों बाद यातना शिविर बने जहां एसए के लोग यहूदियों, कम्यूनिस्टों और अपने विरोधियों को यातनाएं देते थे। कुछ ही महीनों के अंदर हिटलर ने वाइमार लोकतंत्र की कब्र खोदकर उसके ऊपर अपनी तानाशाही कायम कर ली।
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