कई दिनों से सुशांत सिंह राजपूत पर जो नाटक चल रहा है- Shyam Singh Rawat
पिछले कई दिनों से सुशांत सिंह राजपूत पर जो नाटक चल रहा है, वैसे नाटक पहले भी हो चुके हैं। ऐसे ही नाटकों से संघी गैंग ने बरसों अपनी दुकान चलाई है परंतु बाकी नाटकों से ये अब मुंह छुपाते फिरते हैं।
◆ श्यामा प्रसाद की तथाकथित हत्या—
पूरा संघी गैंग 1954 से चिल्ला रहा है—हमारे बाप को नेहरू जी ने मार डाला ये... अरे बाप का मर्डर हो गया रे.. छाती पीटते रहे गैंग के गुर्गे... परंतु जब खुद की सरकारें आईं तो CBI की जांच नहीं करवाई। अटल तो श्यामा प्रसाद का नाम भी नहीं लेता था।
◆ दीनदयाल की तथाकथित हत्या—
इसमें भी संघी गैंग के गुर्गे रुदाली बन कर खूब नौटंकी किए परंतु दीनदयाल पर अचानक सब चुप हो गए!
क्योंकि दीनदयाल की जांच होगी तो 'कोठा पुराण' बाहर निकलेगा। ऊपर से जनसंघ के बलराज मधोक ने जो संघी गैंग को ही दीनदयाल की हत्या का जिम्मेदार बताया था, उस पर जवाब देने पड़ेंगे।
ब्रिटिशर्स के साथ रिश्ते, अंग्रेजों के लिए मुखबिरी और बाकी सारे पाप उजाले में आ जाएंगे। तो संघी गुर्गों ने दीनदयाल हत्या पर बोलना ही बन्द कर दिया।
◆ पूर्व प्रधानमंत्री कांग्रेसी नेता स्वर्गीय श्री लालबहादुर शास्त्रीजी का निधन जिसे संघियों ने हत्या बता कर झूठा प्रचार किया।
इस पर खूब भाषणबाजी और लफ्फाजी करता था अटल, बाकी संघी गुर्गे भी खूब बोलते थे परंतु जब अटल और मोदी की सरकारें आईं तो जांच की मांग को दफना दिया।
★ जबकि शास्त्रीजी की मौत के लिए संघियों के प्रदर्शन को भी जिम्मेदार माना गया था। जिस दिन ताशकंद में शास्त्रीजी पाकिस्तान से समझौता कर रहे थे, उस रात भारत में संघी गैंग शास्त्रीजी के दिल्ली स्थित निवास पर आक्रामक प्रदर्शन कर रहा था। उस वक्त शास्त्रीजी की पत्नी घर पर अकेली थीं।
कहा जाता है कि शास्त्रीजी की पत्नी ने भयभीत होकर शास्त्रीजी को विदेश में फोन किया था। इससे शास्त्रीजी को इस बात का गहरा सदमा लगा था कि उन्हें पाकिस्तानी कह कर गाली दी गई थी। इसी सदमे से उन्हें हार्ट अटैक आया था (संबित पात्रा द्वारा टीवी डिवेट में अपमानित करने से कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी की हृदयाघात से हुई मृत्यु को इससे जोड़कर देखा जा सकता है)।
आज संघी गैंग वापस एक मौत के सहारे अपनी दुकान चलाने के चक्कर में है। संघी गिरोह को हरदम एक लाश चाहिए होती है। बरसों तक उस लाश की कहानी सुनाते हैं, जनता को मूर्ख बनाते हैं और काम निकल जाने पर लाश को फेंक देते हैं। बिहार चुनावों के बाद सुशांत सिंह राजपूत को कौन कितना याद रखता है, यह देखना दिलचस्प रहेगा।
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