चीन ने अब तक की सबसे ख़तरनाक रणनीति के तहत हिमालय में तैनात की परमाणु मिसाइल


चीन ने अब तक की सबसे ख़तरनाक रणनीति के तहत हिमालय में तैनात की परमाणु मिसाइल



भारत-चीन के शीर्ष अधिकारियों के बीच सहमति के बाद भी चीन पैंगॉन्ग झील और देपसांग इलाके से अपनी सेना को पीछे हटा नहीं रहा है। यही नहीं चीन भारत की सीमा से लगे अपने इलाके में नये-नये आयुधों को तैनात कर रहा है।



सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों में हुए खुलासे के अनुसार चीन ने भारत के साथ सीमा विवाद और तनाव के बीच हिमालयी क्षेत्र को अपने नए हथियारों की टेस्टिंग का अड्डा बना लिया है। उसने पिछले महीने लाइव-फायर एक्सरसाइज में 122 मिलीमीटर की सैन्य वाहन पर रखे जाने वाली होवित्ज़र और HJ-10 एंटी टैंक मिसाइल का परीक्षण करने के बाद लद्दाख से 600 किलोमीटर की दूरी पर शिनजियांग प्रांत मे स्थित कोर्ला आर्मी बेस पर 4 से 5 हजार किलोमीटर तक मारक क्षमता वाली परमाणु बमवर्षक मिसाइल DF-26/21 तैनात की हैं। इन सैटेलाइट तस्वीरों में यह स्पष्ट होता है कि चीन ने भारतीय सीमा से सटकर बड़े पैमाने पर अपनी परमाणु शक्ति को बढ़ाया है।



चीन की DF-26/21 मिसाइल अपनी दोहरी क्षमता के लिए दुनियाभर में जानी जाती हैं। यह परंपरागत और एटॉमिक हथियार ले जाने में सक्षम हैं। इससे यह पता नहीं चलता कि कौन सी मिसाइल में किस तरह का हथियार है। भारत के पास इसकी टक्कर की अग्नि-4 और अग्नि-5 मिसाइलें हैं।



चीन की सेना करीब तीन महीने से लद्दाख क्षेत्र में लगातार घुसपैठ की कोशिश और टकराव वाली नीति पर चल रही है। उसने हिमालय क्षेत्र में तनाव बढ़ाने के लिए अपने कुछ ख़ास हथियारों में बदलाव किया है। उसने लद्दाख के पास अपने सैन्य ठिकानों पर अब तक की सबसे ख़तरनाक रणनीति को अंजाम दिया है। भारत की सीमा से लगे अपने इलाके में चीन नई हवाई पट्टियां बना रहा है। ऐसा करने के पीछे चीन की मंशा साफ है कि वह सरहद पर भारत के ख़िलाफ़ दबाव वाली रणनीति अपना रहा है।



पूरी दुनिया को मालूम है कि पिछले छ: सालों से भारतीय नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथों में है जो नित नया झूठ परोस कर देशवासियों को मूर्ख बनाता है और जिसकी प्राथमिकता साम्प्रदायिक घृणा, द्वेष, हिंसा, मंदिर-मस्जिद जैसी एकदम वाहियात बातें हैं। यह भी एक सच्चाई है कि जब कोई देश आर्थिक और कूटनीति के मोर्चे पर कमजोर होता है तो पड़ोसी व अन्य देशों के साथ सम्बंधों तथा सीमा पर तनाव में वृद्धि होती है। जिसका सीधा परिणाम युद्ध या स्वदेशी हितों के विरुद्ध विभिन्न समझौतों के रूप में सामने आता है।



दुर्भाग्यवश भारत में आजादी के बाद इतना कमजोर नेतृत्व इतिहास में कभी नहीं रहा। फिर भी भारतीय गोदी मीडिया देश की आंखों में धूल झौंकने के लिए इसे विश्वनेता और विश्व कूटनीति के नायक के रूप में लगातार प्रस्तुत करता है। जो शायद हिटलर के प्रेस सचिव जोसेफ गोयबल्स के उस कथन के अनुसार एक प्रबल कोशिश है जिसमें उसने कहा था कि देश के प्रचार साधन मुझे सौंप दो मैं जर्मनी को सुअरों के बाड़े में बदल दूंगा।


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