पिछले छः सालों में मोदी एंड कंपनी ने आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक, शैक्षिक

क्या कोई बता सकता है कि पिछले छः सालों में मोदी एंड कंपनी ने आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक, शैक्षिक, सुरक्षा, कृषि, विदेशी निवेश आदि ऐसा कौन-सा क्षेत्र है जिसमें पिछली सरकारों से बेहतर नतीजे दिये हैं और देश को उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ाया है? जबकि इन सभी में लगातार अच्छे परिणाम देने वाली एक अच्छी-भली व्यवस्था इनको विरासत में मिली थी जिसे और भी आगे बढ़ाना था। लेकिन जिसके मन-मस्तिष्क पर सिर्फ और सिर्फ विध्वंस का भूत सवार हो, वह विनाश के सिवाय कुछ भी नहीं कर सकता। यही एकमात्र कारण है जिसके चलते नरेंद्र मोदी बड़े सुनियोजित तरीके से सबकुछ तबाह करते चले जा रहे हैं। यहां तक कि वे "देश नहीं बेचूंगा" के अपने वादे को ठोकर मारकर बड़ी मेहनत से खड़ी की गई सार्वजनिक क्षेत्र की सारी सम्पत्ति निजी हाथों में सौंपते जा रहे हैं। आप बस ऐसे ही मोदी का तमाशा देखते रहिए, धीरे-धीरे वह सबकुछ उनको बेच देगा, जिनके चुनावी चंदे से वह पीएम बना है।


देश का पहला पांच-सितारा होटल अशोका क्यों और कैसे बना, यह जानने योग्य एक ऐसी कहानी है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की राष्ट्रीय गौरव-गरिमा को प्रतिस्थापित करती है। इसका महत्व वही समझ सकता है जिसे राष्ट्रीय अस्मिता से, रचनात्मकता से, निर्माण से प्रेम हो। इस गौरव-गाथा को पत्रकार Adwet Bahuguna ने लिखा है, पढ़िये—


आजादी के कुल आठ साल और कुल 3 साल का गणराज्यीय भारत।  


कल्पना कीजिये तो 1955 में  यूनेस्को का 8वां शिखर सम्मेलन था, पं. नेहरू को सुनने के लिए पेरिस में बड़ी गहमागहमी थी। दुनिया के ताकतवर देशों में नेहरू को एक तिलिस्माई नेता के रूप में देखा जाता था। हालांकि सम्पन्न देशों की कुटिलता भारत के संघीय लोकतंत्र को लेकर  आशंकित रहती थी। उनकी नजरों में भारत बहुत लंबे समय तक संघीय ढांचे को बरकरार नहीं रख सकने वाला था।
नेहरू का भाषण हुआ तो दूसरे दिन के फ्रांस के बड़े अखबार ने लिखा—'Chef intellectuel du pays pillé des Britanniques' यानी—अंग्रेजों के लूटे हुए देश का बौद्धिक सम्पन्न नेता।
नेहरू ने यूनेस्को का 9वां सम्मेलन भारत में करने की पेशकश की। दो दिन तक कोई निर्णय नहीं हुआ। फिर हामी भर दी गयी। रूसी मित्रों ने नेहरू को बाद में बताया कि 'यह सहमति भारत की साख गिराने को दी गयी है क्योंकि भारत में यूनेस्को जैसी संस्था के आयोजन के लिए मानक के अनुरूप कुछ भी नहीं है। कैसे एक साल में कर लोगे?विश्व के प्रतिनिधियों के रहने, खाने लायक न 5 सितारा होटल सुविधा है, न पंचसितारा कान्फ्रेस हॉल।
देश में मौजूद परंपरागत विरोधियों ने इसे नेहरू की लोजिस्टिकल भूल घोषित कर दिया।
नेहरू सुनते सब की थे, वही हुआ भी। नेहरू ने हर खरी-खोटी,भली-बुरी सब सुनी। उसके बाद नेहरू ने देश के सबसे बेहतरीन तत्कालीन दो वास्तुकारों  ई.बी. डॉक्टर और आर.ए. गहलोते को अपने पास बुलाया और मन का डिजाइन साझा किया।


वास्तुकारों ने कहा—"आपके डिजाइन को साकार करने के लिए कम से कम 20 एकड़ जमीन और 2.5 करोड़ रुपयों की दरकार होगी, जो वर्तमान हालात में दूर की कौड़ी नजर आती है।"


नेहरू ने उनकी बात सुनी और  एक महीने बाद काम शुरू करने को कह दिया। अगले दिन सुबह नेहरू ने जम्मू-कश्मीर के राजकुमार रीजेन्ट डॉ. कर्ण सिंह को अपने पास बुलाया और सपना साझा किया। राजकुमार ने 9 दिन में सारी औपचारिकताएं निपटा के अपनी 25 एकड़ पार्कलैंड भारत सरकार को दान कर दी। फिर नेहरू ने मित्र रघुनन्दन सरन, जो कांग्रेस के आजाद हिन्द फौज सैनिक सहायता कोष के ट्रस्टी थे, को बुलाया और बात साझा की। इसी ट्रस्ट के मित्रों ने यथासंभव भारत सरकार को नकद रुपये दान किये।


और फिर 10 महीने 28 दिन की मेहनत के बाद 1956 में कुल 3 करोड़ की लागत से भारत का सार्वजनिक क्षेत्र का पहला पंच सितारा होटल 'द अशोक' चाणक्यपुरी, दिल्ली में खड़ा हो गया!


5 नवम्बर, 1956 को जब नेहरू ने होटल अशोक के कॉन्फ्रेन्स हॉल में दुनियाभर से आये UNESCO के अतिथियों का स्वागत किया तो अतिथियों ने उंगलियां तो सबसे बड़े पिलर लैस हॉल में दांतों तले दबा ली थीं, किन्तु चैलेन्ज की मंशा से सहमति देने वाले कुटिल देशों के प्रतिनिधियों की आंखें फटी की फटी रह गयी थीं क्योंकि आंखों का खून शर्म बन कर टपकने को  उमड़ रहा था लेकिन सामने नेहरू को देख कर शर्म को पीने के सिवा कोई चारा न था।


इस होटल में  विकसित देशों के इतर और भी बहुत-कुछ था जो उनकी कल्पना के भी परे था। वो था बेहद अनुशासित डेकोरम और भारत के ग्रामीण अंचलों के स्वादिष्ट पौष्टक पारंपरिक व्यंजन, जो कि उन्होंने अपने जीवन में पहली बार खाये थे। 
संसद और राष्ट्रपति भवन के निकट स्थित यह होटल मौजूदा समय में भारतीय पर्यटन विकास निगम (आइटीडीसी) के अंतर्गत आता है। इसमें 550 कमरे और 161 सूइट्स हैं। होटल में करीब 1000 कर्मचारी काम करते हैं।
भारतभूमि को एक सम्प्रभु राष्ट्र बनाने वाले निस्वार्थ दानियों, योजनाकारों और निस्वार्थ सेवकों की यह अनमोल गौरवशाली  विरासत आज वह व्यक्ति बेचने को टेंडर निकाल रहा है जिसकी खुद की न तो निर्माण या उन्नति की कोई विचारधारा है न ही इसे बनाने में उसका कोई योगदान है!


उसे देश की हर धरोहर बेच कर अपने लिए 800 करोड़ का बोइंग खरीदना है, 350 करोड़ की लागत से पार्टी मुख्यालय बनाना है। उसे देश की हर शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक धरोहर से चिढ़ है क्योंकि जब वह ऐसी किसी भी जगह जाता है तो खुद को बौना पाता है। इसलिए अपने बौनेपन को, अपने बौने लोगों के बीच वो हर ऊंचे मानक को ढहा देना चाहता है। ताकि उस जैसे बौने से ऊंचा कोई दिखे ही नहीं।  


लेकिन वह यह भूल जाता है कि 'बौनापन आनुवंशिक बीमारी है, उपलब्धि नहीं!'


देश की अस्मिता के प्रतीक होटल अशोक को बेचने का विरोध कीजिये !


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