सरकार ने एक बार फिर पूंजीपतियों की हितैषी व किसान विरोधी होने का सबूत दिया- श्याम सिंह रावत
लीजिये मोदी सरकार ने एक बार फिर अपने पूंजीपतियों की हितैषी और किसान विरोधी होने का सबूत दिया है। और, वह भी तब जबकि देश का कृषि क्षेत्र पहले ही बेजान-सा पड़ा हुआ है। डीजल के दाम लगातार बढ़ने का सबसे अधिक नुकसान किसानों को ही उठाना पड़ रहा है तो अब सरकार का यह नया फैसला उनकी मुसीबत बढ़ाने वाला और जानलेवा भी साबित हो सकता है।
हाल ही में मोदी सरकार ने कुछ बड़े फैसले लिये हैं जिनमें किसानों के हितों की तो बलि चढ़ाई गई है लेकिन उद्योगों को संरक्षण दिया गया है। कोविड-19 महामारी के चलते लागू लॉकडाउन में सबसे अधिक नुकसान दुग्ध उत्पादक किसानों और मक्का किसानों का हुआ है लेकिन सरकार का ताजा फैसला इन दोनों क्षेत्रों के किसानों के लिए जले पर नमक छिड़कने जैसा है।
वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा 23 जून को जारी अधिसूचना के जरिये टैरिफ रेट कोटा (टीआइक्यू) के तहत 15 फीसदी सीमा शुल्क की रियायती दर पर दस हजार टन मिल्क पाउडर के आयात की अनुमति दी गई है। इस पाउडर पर सीमा शुल्क की मौजूदा दर 50 फीसदी है। इसी तरह पांच लाख टन मक्का का आयात भी 15 फीसदी की रियायती सीमा शुल्क दर पर टैरिफ रेट कोटा के तहत करने की अनुमति इस अधिसूचना में दी गई है।
इसके साथ ही डेढ़ लाख टन क्रूड सूरजमुखी बीज या तेल और डेढ़ लाख टन रेपसीड, सरसों रिफाइंड तेल के सस्ती दरों पर आयात की अनुमति टीआरक्यू के तहत दी गई है। दुग्ध चूर्ण के आयात के लिए नैशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी), नैशनल को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (एनसीडीएफ), एसटीसी, एमएमटीसी, पीईसी, नेफेड और स्पाइसेज ट्रेडिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड को अधिकृत किया गया है।
यह आश्चर्यजनक बात है कि जब इन कृषि उत्पादों के सस्ते आयात का रास्ता खोला जा रहा था, लगभग उसी समय स्टील और दूसरे औद्योगिक उत्पादों पर एंटी डंपिंग ड्यूटी भी लगाई जा रही थी। ताकि इनका आयात महंगा हो जाए। इससे घरेलू उद्योगों को संरक्षण अवश्य मिल सकेगा परन्तु दुग्ध चूर्ण और दूसरे कृषि उत्पादों के आयात को सस्ता करने की इस समय क्या जरूरत थी?
बहरहाल सरकार ने यह तनिक भी नहीं सोचा कि एक ओर सीमा पर भी किसान के बेटे शहीद हो रहे हैं तो दूसरी तरफ किसानों की कमर तोड़ने वाला कृषि उत्पादों के आयात का यह कदम किसान परिवारों के लिए ही कितने संकट पैदा करने वाला होगा
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