भारत में लगातार दसवें दिन पेट्रोल-डीजल के दाम क्यों बढ़े
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में कमी के बावजूद भारत में लगातार दसवें दिन पेट्रोल-डीजल के दाम क्यों बढ़े
देश में पिछले दस दिनों में पेट्रोल 5 रुपये और डीजल 5.26 रुपये प्रति लीटर महंगा हो चुका है। जबकि आठ दिनों में कच्चा तेल आठ फीसदी सस्ता होकर 38.73 डॉलर प्रति बैरल पर चल रहा है। दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 76.73 रुपये प्रति लीटर और डीजल का दाम 75.19 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गया है। जबकि मुंबई में अब पेट्रोल 83.62 रुपये और डीजल 73.75 रुपये, चेन्नई में पेट्रोल 80.37 और डीजल 73.17 रुपये तथा कोलकाता में पेट्रोल 78.55 और डीजल की कीमत 70.84 रुपये प्रति लीटर पहुंच गई है।
जहां एक तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (Crude Oil) की कीमतों में गिरावट का दौर जारी है, वहीं दूसरी तरफ देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। सोमवार को वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत करीब 2 फीसदी से ज्यादा गिर गई। इससे कच्चा तेल 35 डॉलर प्रति बैरल के करीब आ गया। सोमवार को अमेरिका वेस्ट टेक्सॉस इंटरमीडिएट (WTI) में कच्चा तेल 2 फीसदी (81 cents) गिरकर 35.45 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। वहीं ब्रेंट क्रूड भी 1.7 फीसदी (66 Cents) गिरकर 38.07 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है। पिछले हफ्ते इसमें 8 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी।
अब जरा यह समझने की कोशिश कीजिए कि 29 नवंबर, 2018 को राजधानी दिल्ली में पेट्रोल का भाव 73.24 रुपये प्रति लीटर था। तब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर WTI क्रूड 56.23 डॉलर प्रति बैरल और ब्रेंट क्रूड 63.31 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर था। तो भारत में मोदी-1 सरकार द्वारा तेल के दाम बाजार आधारित करने से यहां भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दामों में आई कमी का लाभ उपभोक्ताओं को दिया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्यों?
जबकि दुनिया में आज भारतीय उपभोक्ता पेट्रोल-डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स चुका रहा है। तेल पर लगने वाले टैक्स और वैट को देंखे तो भारत में यह करीब 69 फीसदी लग रहा है। वहीं अमेरिका में 19, जापान में 47, ब्रिटेन में 62, फ्रांस में 63 और जर्मनी में 65 फीसदी टैक्स और वैट लगता है। कुछ महीने पहले कच्चा तेल 70 फीसदी तक सस्ता होने पर उत्पाद शुल्क 10 रुपये बढ़ा दिया गया था।
यानी टैक्स वसूली के नाम पर तो भारत सभी विकसित देशों को भी पीछे छोड़ चुका है लेकिन यदि इस वैश्विक कोरोना संकट काल में भारत की जनता को अमेरिका, जर्मनी जैसा आर्थिक पैकेज देने की बात की जाती है तो कह दिया जाता है कि वे तो विकसित देश हैं, हम उनकी तरह खातों में सीधे पैसा नहीं भेज सकते !
इस तरह जनता की जेब खाली करने का कारण क्या है? जबकि उसकी आमदनी के रास्ते बंद हैं। देश की जनता पर यह दोहरी मार क्यों?
इसका उत्तर गोलवलकर के सपनों का भारत बनाने में जुटे हुए लोगों की सरकार को देना चाहिए। हालांकि गोलवलकर के भारत में सवाल उठाने/पूछने की मनाही होना जरूरी है। तभी पिछले छः साल में मोदी एंड कंपनी ने जनता के किसी एक सवाल का जवाब नहीं दिया है। यहां तक कि पीएमकेअर फंड सम्बंधी भी नहीं।
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