वोटजुगाड़ू लोगों को अपनी वोट की तिकड़म देखनी होती है-श्याम सिंह रावत

वोटजुगाड़ू लोगों को अपनी वोट की तिकड़म देखनी होती है इसलिए उनका कोई भी काम इससे परे नहीं होता। इसके लिए वे तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं और मनमानी करने के अभ्यस्त होते हैं। उनकी ऐसी प्रवृत्ति ही बन जाती है। यह अत्यंत दुखद है कि सड़कों पर इस भरी गर्मी में भूखे-प्यासे अपने दुधमुंहे बच्चों, वृद्ध माता-पिता और गर्भवती महिलाओं के साथ पैदल घर लौट रहे मजदूरों के साथ राजनीतिक हितों के लिए अमानवीय व्यवहार राजनेताओं द्वारा किया जा रहा है।


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस नेताओं द्वारा मजदूरों के लिए उपलब्ध कराई गई एक हजार बसों को परमिट, फिटनेस आदि कानूनी औपचारिकताओं के भंवरजाल में फँसाकर अपनी संवेदनहीनता का परिचय दिया है। क्या वे नहीं जानते कि जब नेताओं की रैलियों के लिए बस ही नहीं ट्रकों तक में लोगों को लाकर भीड़ जुटाई जाती है, तब कानूनी प्रावधानों की सुध किसी को नहीं आती।


सब जानते हैं कि देश में कोरोना वायरस फैलाने में सत्ताधारियों का अड़ियल रवैया और हद दर्जे की लापरवाही जिम्मेदार है। तो अब जब परिस्थितियां क्रमशः बिगड़ती जा रही है तो ऐसे में भी यह अड़ियलपन उचित नहीं है। मजदूरों के प्रति थोड़ा मानवीय दृष्टिकोण को भी ध्यान में रखने की जरूरत है। 


इस पूरे प्रकरण में सबसे अधिक निराशाजनक रवैया देश के सर्वोच्च न्यायालय का सामने आया है जिसने केंद्र सरकार की तरफ से कही गई इस बात पर यकीन कर छुट्टी पा ली कि सभी मजदूरों की सुरक्षित घर-वापसी  सुनिश्चित कर दी गई है और अब सड़कों पर कोई मजदूर नहीं है।
कोई सुप्रीम कोर्ट से पूछे कि सड़कों पर आज ये बसें किनके लिए खड़ी हैं? क्या वह सो रही है? क्या सुप्रीम कोर्ट के जज यंत्र हैं? उन्हें कुछ भी सुनाई या फिर दिखाई नहीं देता? इतना कमजोर न्यायालय देश को कभी भी न्याय नहीं दे सकता। उसने यह जरा भी जरूरी नहीं समझा कि क्या सचमुच ऐसा था? जो सरकार इसी अदालत में राफेल विमान मामले में तीन-तीन बार झूठ बोल चुकी है और कोर्ट को टाइपिंग एरर जैसे बहाने बनाकर धोखा दे चुकी है, उसकी इस बात पर विश्वास करने से पहले उसकी जांच कराना आवश्यक नहीं समझा कि धरातल पर मजदूरों की दशा कैसी है।


दरअसल, यह बहुत ही कष्टकारक है कि आम नागरिकों के प्रति पूरे तंत्र में कोई संवेदना नहीं रह गई है। लोगों की जरूरतों, अपेक्षाओं तथा सुविधाओं के बारे में गंभीर सोच में लगातार गिरावट देखी जा रही है। सबकुछ जैसे तदर्थवाद है। 


राजनीति अब दुष्टता से लबरेज है। जो जितना अधिक दुष्ट, वह उतना बड़ा नेता। आज सबसे बड़ा गैरजिम्मेदार यदि कोई है तो वह है वोटजुगाड़ू नेता। इसीलिए आज इस वर्ग की सारी सोच और समझ बस यही रह गई है कि चाहे किसी भी तरह विपक्ष को गलत ठहराया जाये और येन-केन-प्रकारेण श्रेय लेने से रोका जाए, वह जो भी करें, उसमें हर हाल में रोड़े अटकाये जायें।


यदि सत्ताधारियों की नीयत में खोट नहीं है तो इतने लंबे समय से परेशानहाल मजदूरों के रेले सड़कों पर चल रहे हैं और यदि इन्हें मंजिल तक पहुंचाना ही होता तो हर प्रांत में राज्य परिवहन निगम की जो हजारों बसें खड़ी-खड़ी जंग खा रही हैं उनसे ही पैदल चलने वालों की आसानी से मदद की जा सकती थी। 


यदि उत्तर प्रदेश सरकार ईमानदारी से मजदूरों की मदद करना चाहती है तो कांग्रेस ने जो बसें उपलब्ध कराई हैं उनमें से जिन 879 बसों के कागजात सही हैं, कम से कम उनको तो चलने दिया जा सकता है। यह मजदूरों और सरकार दोनों के लिए एक बड़ी संख्या है। 


इस मामले में मुख्यमंत्री जी ने जितना परिश्रम विघ्न डालने के लिए किया, उसका दसवां हिस्सा ही श्रमिकों के लिए करके मानवता का परिचय दिया होता तो उनका संन्यासी होने का ही औचित्य सिद्ध होता, इस एपिसोड में तो वे सिर्फ अजय सिंह बिष्ट ही रह गये हैं। आखीर यह कैसे भुलाया जा सकता है कि मजदूरों का शोषण करने के लिए देश में सबसे पहले उनके  काम के घंटे 8 से 12 करने वाले यही अजय सिंह बिष्ट उर्फ आदित्य नाथ हैं। एक आध्यात्मिक महापुरुष सिद्धयोगी गुरु गोरखनाथ जी की गद्दी पर बैठा व्यक्ति इतना अमानवीय हो गया तो यह समय का फेर ही कहा जा सकता है।


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