विरोध में उठने वाली हर आवाज का दमन कर दिया

बचपन में बाबा एक कहानी सुनाते थे कि जंगल मे एक गैंडा रहता था जो प्रोपेगैंडा चलाने में माहिर था। वह अपने प्रोपेगैंडा, झूठ, अफवाह इत्यादि से ऐसा तिलिस्म खड़ा कर देता था कि क्या झूठ है और क्या सच है, इसमें अंतर करना मुश्किल हो जाता था। 


इसी प्रोपेगैंडा और झूठ के तिलिस्म पर वह अपने विलासी मित्र को पूरे जंगल का राजा बनाने में सफल हो गया। फिर पॉवर मिलने के बाद गैंडा एक-एक कर अपने सभी विरोधियों का काम तमाम कर दिया। विरोध में उठने वाली हर आवाज का दमन कर दिया। उसके बाद बेखौफ होकर अपनी संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ाने लगा। अपने बेटे को बड़े ओहदे पर बैठा दिया। जो भी उसके खिलाफ लिखता बोलता था, वह मॉर्निंग वॉक करना भूल जाता था क्योंकि गैंडा उसका शिकार करवा देता था। उससे बहुत सारे लोग खौफजदा रहते थे। 


आगे कहानी बहुत लंबी है, फिर कभी बाद में सुनाएंगे। अंतिम पैरा सुन लीजिए—


एक बार जंगल में एक बड़ी आफत आ गयी। गैंडा बहुत दिनों से दिख नहीं रहा था। तो कुछ लोगों ने अफवाह उड़ा दी कि गैंडा बहुत बीमार है और अब वह बचेगा नहीं। यह बात धीरे-धीरे पूरे जंगल में पहुँच गयी। फिर यह बात गैंडे को पता चली तो उसने अपने स्वस्थ होने की घोषणा की और अपने सिपाहियों से कहा कि पूरे जंगल में अफवाह फैलाने का सारा ठेका मेरा है। ये कौन दुस्साहसी जीव-जंतु हैं जो मेरे खिलाफ अफवाह फैला रहे हैं। सबको पकड़ कर जेल में डाल दो।


सिपाहियों ने तत्परता दिखाई और दो-चार लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। फिर पूरे जंगल में गैंडे का आतंक छा गया। अफवाह फैलाने वाले लोग जल्दी-जल्दी अफवाह वाली सारी सामग्री हटाने लगे।
उसी जंगल में बहुत सारे ऐसे लोग भी थे, जो इन अफवाहों को देख-सुन कर बड़ा व्यथित थे। वे कहते थे कि लोग क्यों गैंडे के रोग का मज़ाक बना रहे हैं, क्यों लोग उसकी मृत्यु की कामना कर रहे हैं? उसकी मृत्यु इतनी आसान कैसे हो सकती है? उसने इतने पाप किये हैं तो बिना प्रायश्चित किये, वह कैसे जा सकता है? उसे तो अपने कर्मों का दंड भोगना है। वह शतायु हो, वह कर्म फल भोगे, वगैरह-वगैरह......।


ये कहानी मेरे बाबा द्वारा सुनाई गई थी। इस कहानी का किसी भी जीवित जानवर से कोई सम्बंध नहीं है। इसलिए मैं किसी भी लीगल अब्लीगेशन के दायरे में नहीं आता 


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