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Showing posts from February, 2020

आपके अपने बच्चों का भविष्य खराब करते सत्ता के खिलाड़ियों से सावधान- Shyam Singh Rawat

आपके अपने बच्चों का भविष्य खराब करते सत्ता के खिलाड़ियों से सावधान ! क्या आपको कोठारी बंधुओं के नाम याद हैं? वही कोठारी बंधु, जो दिसंबर, 1992 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा में 'रामलला हम आयेंगे, मंदिर यहीं बनायेंगे' कहते हुए उप्र. पुलिस की गोली से खुद अकाल मौत की नींद सो कर भाजपा को संसद में पहली बार 163 के स्कोर तक पहुंचाकर सबसे बड़े दल के रूप में उभारने के औजार बने थे। क्या आपको 2002 के गुजरात दंगों का पोस्टर बॉय बन गया सिर पर लाल पटका बांधे हाथ में लोहे की रॉड लिये अज्ञात दुश्मनों को ललकारते अशोक मोची की तस्वीर याद है? आपको वह चंदन गुप्ता याद है जो 26 जनवरी, 2018 को कासगंज में तिरंगा यात्रा निकालने के चक्कर में मारा गया था? क्या पांच-सात साल बाद किसी व्यक्ति को इसी साल गांधी जी की शहादत के दिन मूक प्रदर्नकारियों को हाथ में तमंचा लिये 'आओ, किसको चाहिये आजादी' ललकारते हुए फायर करने वाला गोपाल शर्मा याद रहेगा? नहीं ना, क्योंकि इन जैसे तमाम चेहरे अपना उल्लू सीधा करने के बाद हवा में विलीन होने के लिए ही तैयार किये जाते हैं। दूर न जाकर आप केवल कश्मीर के आतंकवाद समर्थक ने

आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करने वालों ने इसे बहुत ठीक से समझा था- Shyam Singh Rawat

आज देश में जन-सरोकारों को लेकर संघर्षरत तथा लोकतंत्र के प्रहरी न जाने यह क्यों भूल जाते हैं कि भारत अब भी गांवों का देश है। आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करने वालों ने इसे बहुत ठीक से समझा था। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ग्रामीण भारत में प्रतिरोध की सूनामी पैदा हो गई थी। इसके विपरीत आज हम गांवों को सिरे से भुलाकर शहरों और खास तौर पर राजधानियों से देश की कॉरपोरेट पोषित पूंजीवादी तथा मनुवादी व्यवस्था को बदल देने की खुशफहमी में हैं। गांवों की आर्थिक स्थिति बाजारवाद और शहरीकरण की वजह से उपभोक्तावाद की चमक-दमक में नज़र नहीं आती, जबकि किसान भारी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं। वे अपनी जमीन से बेदखल होकर अपने ही देश में शरणार्थी बन रहे हैं। दलित, आदिवासी और पिछड़े भारी तादाद में रोज़गार और आजीविका से बेदखल हो चुके हैं। दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर पूंजीवाद ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण को रोजगार खत्म करने का साधन बना डाला है। इससे हर तरफ प्राइवेट सैक्टर की चकाचौंध है। यहां तक कि सरकारें भी प्राइवेट सैक्टर की कठपुतली बन गई हैं। सरकार और प्राइवेट सैक्टर के बीच अन्योन्याश्रित सम्बंध इतना मजबूत बन गया है