महाराष्ट्र का सियासी घटनाक्रम मीडिया इतना कमजोर तो न था

महाराष्ट्र का सियासी घटनाक्रम मीडिया इतना कमजोर तो न था
डॉ सुभाष गुप्ता


महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम ने केवल राजनीतिक पैंतेरेबाजी का नमूना ही पेश नहीं कियाए बल्कि मीडिया के एक बड़े बदलाव को भी नुमांया किया है। नेताओं से नजदीकीए उनके खेमों में अच्छी घुसपैठ और हर घटनाक्रम पर पैनी नजर रखने की मीडिया की खुशफहमी को भी इस घटनाक्रम ने तार तार कर दिया। देश का मीडिया उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाता रह गया और फडनवीश ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली।
इस सियासी उठापटक ने मीडिया की कमजोर होती पकड़ का बाखूबी अहसास करा दिया है। सुबह के अखबार उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने पर कांग्रेसए एन सी पी और शिवसेना में बनी सहमति की खबरों से अटे पड़े हैं। कमोबेश न्यूज चैनल भी इसी तरह के समाचार देते रह गये। ऐसा क्यों हुआ कि किसी भी अखबार या न्यूज चैनल को बीजेपी और एन सी पी के विधायकों ; जो अब अजीत पंवार के साथी कहे जा रहे हैंद्ध के बीच पकती सियासी खिचड़ी का आभास तक नहीं हुआघ् 
यह घटनाक्रम मीडिया की उस कमजोरी को जाहिर करता हैए तो खबरें सूंघने और बड़े जतन से छिपाया जाने वाला सत्य खोजकर निकालने की उसकी क्षमता से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है। किसी भी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन एकए दो या चार लोगों से जुड़ा मसला नहीं होता। शपथ ग्रहण समारोह के लिए राज्यपालए राजभवन के अधिकारी और सरकार के गोपन विभाग मिलकर व्यवस्थाएं करते हैं। इसके साथ ही शपथ ग्रहण करने वाले नेताओं को भी पूरे कार्यक्रम की जानकारी होती है। सुरक्षा व्यवस्थाओं से जुड़े अधिकारी भी ऐसे समारोह की व्यवस्थाओं से बाबस्ता रहते हैं। इतने सारे लोगों के बीच वालों तैरने वाली इतनी महत्वपूर्ण जानकारी की भनक मीडिया को न मिलनाए जहां इन सब लोगों की सूचनाओं पर बेहतरीन नियंत्रण की रणनीति को रेखांकित करता हैए वहीं मीडिया के उस मुगालते को भी जगजाहिर करता हैए जो उसकी कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है।
सियासत में गोपनीयता का बहुत महत्व है। सूचनाएं लीक न होंए यह राजनीतिक फैसलों की अहमियत को बढ़ाने में एक बड़ी भूमिका निभाता है। आईण्टीण् के इस दौर में जब कई नेताओं के बैडरूम तक के स्टिंग हो जाते हैंए तब इस ऊंचे स्तर की गोपनीयता बीजेपी और अजीत पंवार की रणनीतिक कुशलता मानी जा सकती है। लेकिन खबरों की खबर रखने वालों का बौनापन अपनी जगह है।
ऐसा लगता है कि मीडिया अब उन्हीं सूचनाओं पर ज्यादा निर्भर रहने लगा हैए जो सियासी दल प्लेट में परोसकर उसके सामने रखते हैं। यह स्थिति सच खोद निकालने का दंभ भरने वालों के लिए तो कतई अच्छी नहीं है। वक्त का तकादा है कि इस घटनाक्रम को एक बड़े सबक के रूप में लिया जाए।


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